Wednesday, 28 February 2018

GUM SHUDA KI TALAASH

मुझे मेरी गुम शुदा ज़िन्दगी की तलाश है,
वो जो कोने में पड़ी है, क्या उसी की लाश है?

सोचा था वक़त आने पे सब कुछ कर पाएंगे,
फिर ही हम इस दुनिया से हंसते हुए जाएंगे;
वक़त गुज़रता गया और एहसास तक न हुआ,
ज़िन्दगी के वो हसीन लम्हे फिर कभी न आएंगे।

मुझे मेरी गुम शुदा ज़िन्दगी की तलाश है,
आखिर में चले जाने पे अब उसका एहसास है।



सहर जब थी जवां तो कभी न सोचा शाम का,
काम में यूँ मसरूफ के कभी न सोचा आराम का;
कई सरगर्मियों का इतना दिलकश था आगाज़,
के सोते जागते उन दिनों कभी न सोचा अंजाम का।

मुझे मेरी गुम शुदा ज़िन्दगी की तलाश है,
मेरे आगोश से निकल गयी, नहीं अब मेरे पास है।

काश अब जो मेरा इल्म है वो तब मुझे मिला होता,
काश मैं अपनी बेखबरी में ज़िन्दगी से हाथ न धोता;
काश ज़िन्दगी के प्यार को समझ लेता मैं तब,
आखिर में उस के चले जाने पे इस तरह न रोता।

मुझे मेरी गुम शुदा ज़िन्दगी की तलाश है,
उनके यहां ही रहती है, जिनको यह रास है।

ज़िन्दगी और वजूद दोनों अलग चीज़े हैं यारो,
कुछ इस तरह से ज़िन्दगी के संग वक़त गुज़ारो,
ज़िन्दगी बन के रहे आपकी अपनी महबूबा,
बुढापे में भी अपनी माशूका को न हारो।

नहीं तो...

मुझे मेरी गुम शुदा ज़िन्दगी की तलाश है,
वो जो कोने में पड़ी है, क्या उसी की लाश है?