Wednesday 14 March 2018

HASYA PANKTIYAN OF THE DAY - NAARI SHAKTI

Hasya Panktiyan of the Day #36
(The other 35 are on www.sunbyanyname.com (my other blog))


This should have been published on International Women's Day but my blog was down.

उसने कहा: मैं नारी हूँ, आज मेरा दिन है,
मैंने कहा: मैं अनाड़ी हूँ, आज भी मेरा दिन नहीं;
उसने कहा: नारी बगैर जीना एक sin  है,
मैंने कहा: दिल तो करता है, लेकिन नहीं। 

सदियों के पक्षपात का मुझ से ही क्यों बदला,
मैंने तो नारी को हरदम समझा है दुर्गा;
कई और होंगे जो इसे समझते हैं अबला,
मैं तो हर दम बना हूँ इसके लिए मुर्गा।

पहले माँ, बहन और अब बीवी के इशारे से,
मैं हो जाता हूँ उधर से इधर,
औरत देख कर निकल जाता हूँ किनारे से,
मेरी तो उस तरफ उठती ही नहीं नज़र।  

कभी हो नहीं सकती आपकी और मेरी जंग ,
आपको मेरा शत शत प्रणाम;
आपके और मेरे एक जैसे हैं ढंग,
सुबह शाम आप ही को करते हैं सलाम। 

हर वक़्त की है हमने नारी की पूजा,
उसके गुस्से से लगता है डर;
हमारे दिल में कभी ख़याल न आया दूजा,
सजदे में रहे हम ज़िन्दगी भर। 

सिर्फ दिल में कभी कभी आया ये सवाल ,
कौनसा वह दिन है जो मर्द का है?
कभी तो उनको आएगा हमारा भी ख्याल,
अभी तो माहौल ही सर्द  सा है।

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