Thursday 1 March 2018

MAIN HOON KE NAHIN?

दिल की ख़ामोशी कुछ इस कदर बड़ गई है,
कि अब अपने आप से भी बात नहीं होती।
तन्हाई और मेरा कुछ अजब सा रिश्ता था,
अब तो उस से भी मुलाक़ात नहीं होती।

अंदर और बाहर भीड़ है, हरदम शोर है,
गुफ्तुगू का नहीं मिलता कोई मौका;
अपनी ही ज़िन्दगी पे क्यों किसीका ज़ोर है?
ज़ाती आज़ादी भी है क्या कोई धोका?

 देखता हूँ गौर से तो यूँ होता है महसूस,
मैं हूँ अपने ही तसव्वुर का ग़ुलाम;
यही ख़याल मुझको बनाता है मायूस,
अपनी सोच से मैं हूँ खुद ही बदनाम।


किसने बनाया मुझे और क्यों बनाया?
क्या मैं हूँ अलग और मुनफ़रीद?
फिर ये दिल पे किस का है साया,
कौन रहता है हमेशा मेरे दिल के करीब?

जाने कब मिले इन सवालों का जवाब?
क्या पता, रवि, मैं कुछ हूँ के नहीं?
ज़र्रा ज़र्रा खुदा ने बनाया है लाजवाब,
पर मैं अपने ही दिल में रहूँ के नहीं?

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