i-Peg Poem of the Week #6
These poems are for my close friend Maj Vishwas Mandloi's delightful group of tipplers called i-peg. One has to raise a toast to the committed lot for their single-minded aim of spreading cheers!
All this while, the poems were appearing on www.sunbyanyname.com. Now onwards, these would appear here.
Here is the first one on this blog:
क्या पता मेरे है के नहीं नसीब,
क्यों देखूं मैं जन्नत के ख्वाब?
यह जो है जो हरदम है करीब,
बोतल में भरी प्यारी सी शराब।
बाकी सब गैर, यह ही है हबीब,
बुढ़ापे में भी दिखा देती है शबाब।
इसके लिए न अमीर न ग़रीब,
सबके लिए है बराबर आफताब।
मय कभी किसी की न हुई रकीब,
किसी का नहीं है खाना - ए - खराब।
कहता है रवि उसके अच्छे हैं नसीब,
जिसे मिली है यह जन्नत - ए - शराब।
These poems are for my close friend Maj Vishwas Mandloi's delightful group of tipplers called i-peg. One has to raise a toast to the committed lot for their single-minded aim of spreading cheers!
All this while, the poems were appearing on www.sunbyanyname.com. Now onwards, these would appear here.
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क्या पता मेरे है के नहीं नसीब,
क्यों देखूं मैं जन्नत के ख्वाब?
यह जो है जो हरदम है करीब,
बोतल में भरी प्यारी सी शराब।
बाकी सब गैर, यह ही है हबीब,
बुढ़ापे में भी दिखा देती है शबाब।
इसके लिए न अमीर न ग़रीब,
सबके लिए है बराबर आफताब।
मय कभी किसी की न हुई रकीब,
किसी का नहीं है खाना - ए - खराब।
कहता है रवि उसके अच्छे हैं नसीब,
जिसे मिली है यह जन्नत - ए - शराब।
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